Prbhat kumar

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प्रेम में दिवंगत हो गई

प्रेम में दिवंगत हो गई आत्मा।
दर बदर अब भटकती आत्मा।

साज़िशे पूर्व उसने रचि प्यार में,
मीठे शब्दों में फंस गई आत्मा।

स्वयं से अधिक  चाहा था जिसे,
प्राण उसने मेरी आज ली आत्मा।

इश्क के नाम पे उसने धोखा दिया,
पैंतिस हिस्सों में तन हो गई आत्मा।

घर द्वार पार की गम ही गम मिला,
खूशी बाबूल में थी कह रही आत्मा।

प्रेम जाल ऐसा मुझपे बिछाया उसने,
वह बहेलिया था झट फंस गई आत्मा।

उसके झांसे में तन मन आ ही गया,
खूद को स्वयं समर्पित की आत्मा।

क्रूरता पशु दुष्ट दानव का परिचय दिया,
अपने पसन्द पे आज रो रही आत्मा।

स्वरचित एवं मौलिक रचना 
नाम:- प्रभात गौर 
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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4 Comments

Gunjan Kamal

24-Nov-2022 06:16 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Raziya bano

19-Nov-2022 06:32 PM

Shaandar

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Sachin dev

18-Nov-2022 04:25 PM

Very nice

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